DON'T QUIT
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BHAGAVAD GITA AS IT IS |
अध्याय-2,शलोक-2
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------श्रीभगवानुवाच।
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन ॥
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# भावार्थ
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------श्रीभगवान् बोले (टिप्पणी प0 38.1) - हे अर्जुन! इस विषम अवसरपर तुम्हें यह
कायरता कहाँसे प्राप्त हुई, जिसका कि श्रेष्ठ पुरुष सेवन नहीं करते, जो स्वर्गको
देनेवाली नहीं है और कीर्ति करनेवाली भी नहीं है।
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# संधि विच्छेद
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------कुतः त्वा कश्मलम् इदम् विषमे समुपस्थितम् ।
अनार्य-जुष्टम् अस्वर्ग्यम् अकीर्तिकरम् अर्जुन ॥
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# अर्थ
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------कुतः –“where”.
त्वा –‘युष्मद्’.
कश्मलम् – “dirty” (गंदा)
इदम्-itself(खुद)
विषमे – “in this odd hour”.
समुपस्थितम्-”आया है”
अनार्य-जुष्टम् –“dishonorable act”(अपमानजनक कार्य)
अस्वर्ग्यम् “not worthy of heaven”
अनार्य-जुष्टम् –“dishonorable act”
अकीर्तिकरम् – “infamy”(बदनामी)
अर्जुन
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# आसान भाषा मे मतलब
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SHREE KRISHNA BHAGAWAN JI GYAN |
श्री कृष्ण भगवान कहते हैं कि अर्जुन इस समय तुम कायरता वाली बातें क्यों कर रहे हो ऐसी
बातें श्रेष्ठ लोग नहीं करते और ना ही इससे तुमको स्वर्ग मिलेगा और ना ही तुम प्रसिद्धि हो
जाओगे उल्टा अगर तुम इस युद्ध को छोड़ोगे तो तुम्हारी बदनामी होगी अर्जुन जैसे ही हम
भी हमारे जीवन में युद्ध करते करते कहीं अटक जाते है इसलिए भगवान जी अर्जुन के
द्वारा हमें बता रहे हैं कि हम सब को भी जीवन में अलग-अलग युद्ध लडने पड़ेंगे जो भी है
उसमें लड़ते रहना होगा उसको छोड़ो मत क्योंकि उसको छोड़ने से तुमको कुछ भी नहीं
मिलेगा और उल्टा तुम्हारी बदनामी होगी तो ऐसे में तुमने जो युद्ध शुरु करा है उसमें लड़ते
रहो छोड़ो मत।
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